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मोहन भागवत ने दिल्ली की एक मस्जिद जाकर मुस्लिम बुद्धिजीवियों और इमामों से भेंट की। उन्होंने फिर कहा कि हमारा डीएनए एक है और अधिकांश मुस्लिम धर्म परिवर्तन कराए जाने के बाद मुस्लिम बने हैं। दोनों की जड़ें एक जगह हैं अतः दोनों के बीच सौहार्द बना रहना चाहिए भागवत ने कहा कि (1/11)

हिंदुओं को काफिर कहने से हिंदू समाज नाराज होता है। साथ ही गौहत्या से हिंदुओं का दिल टूटता है। उन्होंने कहा कि जब हमें साथ साथ रहना है तो एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान दोनों पक्षों को करना चाहिए। मुस्लिम बौद्धिकों ने देश में उत्पन्न माहौल पर चिंता जताई। साथ ही शिवलिंग (2/11)
प्रकरण पर मुस्लिम समाज की चिंताओं से अवगत कराया। मुस्लिम विद्वानों ने कहा कि वे देश में गौहत्या का समर्थन नहीं करते, इसके लिए कानून भी है। ऐसे अनेक अन्य मसलों पर गंभीर चर्चा हुई जो आजकल दोनों समाजों के बीच खासा वैमनस्य पैदा कर रहे हैं। संघ के नेता और दशकों से मुस्लिम समाज (3/11)
के समन्वय को प्रयत्नरत इंद्रेश कुमार की पहल पर यह बैठक हो पाई। निश्चित रूप से दोनों धर्मावलंबियों के बीच समन्वय के प्रयास होने चाहिएं। मंथन यह जरूर करना पड़ेगा कि इतिहास की गलतियों की सजा मनुष्यता कब तक भुगतती रहेगी। दरअसल 75 सालों में राजनीति ने बड़े जहरीले बीज बो दिए (4/11)
हैं। फसलें दूर तक फैल गई और समस्याएं हदें पार कर गई। संघ प्रमुख मोहन भागवत की यह पहल अच्छी है। मुस्लिमों को यह समझना होगा कि बीच की दरार के लिए कौन जिम्मेदार है, यह इतिहास में छिपा है। वह क्या था, इसका पता इतिहास को पढ़ने, सचमुच पढ़ने और सचमुच समझने से होगा। इतिहास बताएगा (5/11)
कि अतीत में इस देश के मूल निवासियों पर क्या क्या जुर्म हुए हैं वे जुर्म पीढ़ी दर पीढ़ी दिलों में बस गए हैं। समझना पड़ेगा कि जो जख्म दिलों में हैं, उन्हें कुछ सौ वर्ष पर मुसलमानों के पूर्वजों ने भी भोगा है। सच कहें तो असली दर्द उन्हीं पुरखों ने भोगा। पीढ़ियां गुजरती गई, (6/11)
समय आगे बढ़ता रहा और अपने पूर्वजों के जख्मों को अगली पीढ़ियों ने भुला दिया। उन जुल्मों से जो बच गए, वनों में छिप गए या पहाड़ों में चले गए, ध्यान से सोचिए, उनके पुरखे भी आपके पुरखों के रिश्तेदार थे या उन्हीं के भाई बंधु थे तो फिर किसने सिखाई नफरत? यह राजनीति से पूछिए। (7/11)
जिन्ना के जिन्न से पूछिए जिसने अलग राष्ट्र का पहला बीज बोया। उन नेताओं या उनके वंशजों से पूछिए जिन्होंने जातियों के नाम पर वोट मांगे। आजादी के बाद आए उन नेताओं से पूछिए जिन्होंने जाति धर्म के आधार पर राजनैतिक दल खड़े किए। उनसे पूछिए जिन्होंने यह कहकर बेवजह अलगाव की आग (8/11)
भड़काई कि देश के संसाधनों पर देशवासियों का नहीं, किसी एक समूह का अधिकार है। खैर, किसी भी ने भी की हों, गलतियां तो देश में ही हुई हैं और इन्हें सुधारना भी हमें ही होगा। मोहन भागवत ने मदरसे में जाकर अच्छी शुरुआत की, पहले भी वे कईं बार पास आने के लिए ऐसे बयान दे चुके हैं। (9/11)
मुस्लिम समाज के बौद्धिकों को भी कुछ गलतियों को स्वीकार करना चाहिए। उदाहरण के लिए स्वीकार कीजिए कि सिमी गलत थी और नाम बदलकर बनी पीएफआई भी गलत है। साफ साफ कहिए कि मुस्लिम समाज आतंकवादियों और अलगाववादियों से घोर नफ़रत करेगा। कम से कम मान तो लीजिए कि देश के मंदिर तोड़े गए (10/11)
थे। मोहन भागवत उस संगठन के प्रमुख हैं जिससे निकले नेता देश चला रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि देशवासियों की समझ जागेगी और मोहन भागवत का मदरसा मस्जिद जाना निरर्थक नहीं जाएगा। @Mohan Bhagwat #साभार (11/11)
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