कब तक आस लगाओगी तुम,
बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो
दुशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयंगे
कल तक केवल अँधा राजा,
अब गूंगा बहरा भी है
होठ सी दिए हैं जनता के,
कानों पर पहरा भी है
2
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझायेंगे ?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयंगे
पुष्यमित्र उपाध्याय
3