देश आजाद हुआ, नेहरू लोकतंत्र, सेकुलरिज्म तथा सेकुलरिज्म का नकाब लगाये सनातनी नकली ब्राह्मणों को लेकर संविधान के अनुसार चले, नेहरू ने कभी भी सेकुलरिज्म से समझौता नही किया तब दलित , मुसलमान साथ रहे. असली सनातनी ब्राह्मण जो सेकुलरिज्म और
लोकतंत्र मे कभी विश्वास नही किये वे संघी खेमे मे रहें . नेहरू का कद बड़ा था , सब खोल में रहकर लाभ लेेेते रहे और अंदर अंदर नेहरू का कब्र खोदते रहे , अयोध्या मे 1949 में बाबरी मस्जिद मे राम लला की मूर्ति रखने का षड़यंत्र क्या बिना मुख्यमंत्री के ईच्छा के संभव था? कदापि नहीं ।
नेहरू पटेल एंड कंपनी के सामने लाचार रहे। पटेल के मरने के बाद काग्रेस के नकली ढोंगी सनातनी ब्राह्मण सेकुलरिज्म का नकाब ओढ़कर नेहरू का तलुआ चाटने लगे। नेहरू के जाते ही सबसे ज्यादा इंदिरा का विरोध यही किये कि प्रधान मंत्री न बने।
संघी चितपावन ब्राह्मण मुंजे, सावरकर , हेडगवार, गोवलकर हिंदू धर्म का नकाव लगाकर संविधान, लोकतंत्र , सेकुलरिज्म का डंटकर विरोध किये. जनसंघ नाम की पार्टी बनाकर सनातनी ब्राह्मणों श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय , अटल विहारी बाजपेयी वगैरह को सामने रखकर नेहरू का
विरोध करते रहे, नेहरू के सामने इनकी औकात दो कौड़ी से ज्यादा कभी नही रही। तब ये लोहिया को मिलाये जो पिछड़ों के नेता बन गये थे। लोहिया इनके साजिश और नेहरू के ईर्ष्यां वशीभूत होकर गांधी के हत्यारों से हाथ मिलाकर पहली बार संसद मे पहुंच गये। नेहरू
का तो कुछ नही बिगाड़ सके क्यू्ंकि दलित, मुसलमान और सेकुलरिज्म का नकाब लगाये तथाकथित सनातनी ब्राह्मण कांग्रेस के साथ थे। नेहरू के जाते ही कांग्रेस के हिंदू नेशनलिस्टों कामराज, अतुल्य घोष, एस के पाटिल , मोरारजी देसाई, संजीवा रेड्डी वगैरह दबाव तथा
संघी चितपावनों और लोहिया के गैरकांग्रेसवाद से परेशान होकर मजबूरी वश इंदिरा गांधी को कट्टर मुसलमानों यानि मजहबी मुल्लों को खुश करने तथा कांग्रेसी दलित नेता जगजीवन राम के 1977 में पार्टी छोड़ने के कारण, मुसलमान दलित जो कांग्रेस के रीढ़ थे कांग्रेस से दूर होते चले गये।
इंदिरा गांधी को सत्ता बचाने के लिये लोकतंत्र, सेकुलरिज्म से समझौता करना पड़ा, और यहां तक संविधान के आपातकालीन धारा का उपयोग करके आपातकाल लगाना पडा। वहीं से कांग्रेस कमजोर होती गयी , नेहरू का लोकतंत्र कमजोर हो गया, फासिस्ट ताकतें लोहिया , जय प्रकाश , चरण सिंह जैसों के कंधे पर
चढ़कर दिल्ली की सत्ता मे हिस्सेदार बन गयी। आज दिल्ली की सत्ता पर २ सीट से चलकर पूर्ण बहुमत पर काबिज हैं। सेकुलरिज्म , लोकतंत्र पर फासिज्म का खतरा मंडरा रहा है। नेहरू को कभी किसी मंदिर - मस्जिद में या किसी मुल्ला , शंकराचार्य के यहां जाते कभी किसी ने देखा है।
आज उनके वंशज संघियों के दबाब में हिंदुओं को खुश करने के लिये मंदिर मस्जिद का चक्कर लगा रहे हैं , जनेऊ दिखाना पड़ रहा है। यह कांग्रेस के लिये शुभ नही हैं। राहुल के मंदिर मस्जिद धर्म से दूरी बनाकर चलना होगा. ढोंगियों का आशीर्वाद लेने की सलाह जो दे रहे हैं
वे सभी संघी दलाल कांग्रेस में सेकुलरिज्म का नकाब लगाकर पड़े हैं। ऐसे लोंगो से सावधान होना होगा। लोकतंत्र सेकुलरिज्म संविधान को बचाना है और कांग्रेस को नेहरू की तरह मजबूत करना है तो मंदिर मस्जिद से दूर रहना होगा। मुट्ठी भर सवर्ण ब्राह्मण राजपूत बैकवर्डों
से फेडरेशन बनाकर कांग्रेस को गर्त में पहुंचा दिया। कांग्रेस को मजबूत करना है तो दलित मुसलमानों को वापिस लाना होगा । ओ बी सी कभी भी कांग्रेस के साथ नहीं रहे , ना रहेंगे. हां वर्तमान में उनसे ताल मेल कर सकते हैं वह भी अपने शर्तों पर , दबाबव में नही।
पावर हाऊस कितना मजबूत कर ले अगर अच्छी कंपनी का टिकाऊ बल्व नहीं होगा तो रोशनी संभव नहीं । जमीन पर फ्यूज बल्वों से कांग्रेस भरी पडी है, फ्यूज बल्वों को बदलिये। योग्य लोगों को लाईये।
राहुल गांधी जी आप नेता तो बन गये हैं इसमे दो राय नहीं। लेकिन कांग्रेस मजबूत हो गयी है शंका है।