राम कृष्ण परमहंस के शिष्य नरेन्द्रदत्त जो बाद में स्वामी विवेकानंद कहलाये शिकागो में हो रहे धर्म सभा में पहुँच तो गये मगर उन्हें हिन्दू धर्म के शंकराचार्य के लिखित परमिशन के बगैर बोलने का मौका नहीं दिया जा रहा था,शंकराचार्य ने लिखकर दे तो दिया मगर यह लिखा कि ...
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नरेन्द्रदत शूद्र है उसे प्रवचन का अधिकार नहीं है तब धर्म सभा ने विचार किया कि आया है तो उसे ऐसे विषय पर बोलने को कहा जाय जिस पर वह बोल ही न पाये ।।
और अंत में उन्हें मौका मिला,और उन्होंने पूरे 72 घंटे तक अपना प्रवचन दिए, तब के शंकराचार्य नफरत फैलाने वाला ही था
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और आज के धर्म गुरूओं का गुरुर भी नफ़रती ही है , इंसान इंसान में भेद पैदा करने वाला धर्म पाखंडी तब भी था और आज भी है। हम मेहनत पर भरोसा करने वाले लोगों का एक ही धर्म है जिन्होंने इस खूबसूरत दुनिया को अपनी श्रम की ताकत से बेहतरीन बनाया है और बनाते जा रहे हैं
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कुछ लोग जो मुट्ठी भर हैं वहीं लोग इस देश के सभी संशाधनों पर कब्जा जमाकर शोषण कर रहे हैं।।
प्रकृति कभी भेदभाव नहीं करती.!!
आइए प्रकृति के नियम का पालन करते हुये हम सभी श्रमिक वर्ग एक हों जाएं, नफरत और जुल्म के खिलाफ लड़ें यही हमारा प्राकृतिक धर्म है,कर्तब्य है,अधिकार है।।
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