"सुनहु भरत भावी प्रबल,*
*बिलखि कहेहूं मुनिनाथ।*
*हानि लाभ, जीवन मरण,*
*यश अपयश विधि हाथ।।"*
*अर्थात - जो विधि ने निर्धारित किया है, वही होकर रहेगा!*
*न श्रीराम के जीवन को बदला जा सका, न श्रीकृष्ण के!*
*न ही महादेव शिव जी, सती की मृत्यु को टाल सके, जबकि महामृत्युंजय मंत्र उन्ही
का आवाहन करता है!*
*न गुरु अर्जुन देव जी, और न ही गुरु तेग बहादुर साहब जी, और न दश्मेश पिता गुरु गोविन्द सिंह जी, अपने साथ होने वाले विधि के विधान को टाल सके, जबकि आप सब सर्व समर्थ थे!*
*रामकृष्ण परमहंस भी अपने कैंसर को न टाल सके!*
*न रावण अपने जीवन को बदल पाया, न ही
कंस, जबकि दोनों के पास अपार समस्त शक्तियाँ थी!*
*इंसान अपने जन्म के साथ ही जीवन, मरण, यश, अपयश, लाभ, हानि, स्वास्थ्य, बीमारी, देह, रंग, परिवार, समाज, देश-स्थान सब पहले से ही निर्धारित करके आता है!*
*इसलिए सरल रहें, सहज रहें, मन, वचन और कर्म से सद्कर्म अच्छे काम में लीन रहें!*
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